|| हरि ॐ काली ||

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|| गुरु-मन्त्र ||

किसी को गुरु-मन्त्र देने से उसके पापों और पुण्यों का उत्तरदायित्व गुरु के सिरपर चला आता है | जिसमें दूसरों के दोष धोने का सामर्थ्य हो वही गुरु बन सकता है | अमरकोष में ‘गुरु’ का पर्याय है “दोषज्ञ”, अर्थात जो शिष्य के छुपे पापों को जान सके (और दूर करने का उपाय कर सके)|
शिष्य की परिस्थिति और क्षमता के अनुसार अध्यात्म-मार्ग पर चलने का व्यवहारिक ज्ञान सम्यक रूप से प्रदान करने को सम्-प्रदाय की दक्षता देना है, अर्थात दीक्षा है |जिसके ज्ञान-चक्षु खुले नहीं, उसे गुरु बनने का अधिकार नहीं है |

|| सृष्टि ||

हम जिस सृष्टि या संसार में रहते हैं उसको बने व चलते हुए 1 अरब 96 करोड़ से अधिक वर्ष हो गये हैं। इस अवधि में मनुष्यों की लगभग 78 हजार पीढि़यां बीत गई हैं अर्थात् हमारे माता-पिता, उनके माता-पिता, फिर उनके और फिर उनके माता-पिता, इस प्रकार पीछे चलते जाये तो लगभग 78 हजार पूर्वज व उनके संबंधी बीत चुके हैं अर्थात् वह जन्में और मर गये। हमारे इन पूर्वजों ने अपनी बुद्धि, ज्ञान व अनुभव से अपने जीवन काल में आध्यात्मिक क्षेत्र में भी अनुसंधान कार्य किये और वैज्ञानिकों की तरह से अनेक शास्त्रों व ग्रन्थों की रचना की।